गुजरते थे इन गलियों से कभी, अब इनकी यादें सताया करती है
अंजानी उन राहों से, अपनों की आहट सुनाई देती है
बरसात की धुंद लहरों में, कश्तियाँ पार लगाया करते थे
दोस्तों संग जीवन का हर रंग सजाया करते थे
बह गया वो बचपन अब तो परछाइयाँ दिखाई देती है
अंजानी उन राहों से, अपनों की आहट सुनाई देती है
जीने की भागदौड़ में, दूर ले आयी तक़दीर हमें
छूट गया सब साथ अपनों का जिंदगी की इस रफ़्तार में
सपनों की भीड़ में नजरे अतीत अपना ढुंडती है
अंजानी उन राहों से, अपनों की आहट सुनाई देती है
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