बढ़ते हुए क़दमों को सहारे की कमी थी,
आसमां को छूने वाले सपनों को होसलों की कमी थी ।।
लफ्ज़ निकलते तो थे खुशियाँ बयां करने वाले,
उन्हें समझने वाले फन्कारों की कमी थी ।।
खूब मिली ज़िन्दगी जिसे दुख का अंधेरा भी ना छू सके,
उसे रोशन करने वाले एक किरण की कमी थी ।।
कमी तो थी जिंदगी की मगर..
हममे जीने के चाहत की कमी न थी ।।
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